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यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं,

अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो।

मिर्ज़ा ग़ालिब


यानी: अगर तुम मुझे इसी को “आज़माना” (परीक्षा लेना) कहते हो, तो फिर सच में सताना किसे कहते हैं? जब तुम मेरे दुश्मन (अदू) के हो ही गए, तो फिर मेरी वफ़ादारी और सब्र का इम्तिहान क्यों लिया जा रहा है?


गहरी तशरीह: यह शेर मोहब्बत में बेवफ़ाई और नाइंसाफ़ी का बयान है। शायर अपने महबूब से शिकायत कर रहा है कि अगर उसे छोड़कर किसी और का हो जाना ही आज़माइश थी, तो फिर उस पर इतना सितम क्यों? जो पहले ही बेगाना हो चुका है, वो फिर किसी की वफ़ादारी को परखने का हक़ कैसे रखता है? यह शेर उन हालात का बयान करता है जब कोई इंसान रिश्ते में वफ़ादारी से क़ायम रहता है, मगर दूसरा इंसान किसी और का हो जाता है और फिर भी सवाल-जवाब करता है।


मिसाल: जैसे कोई आशिक़ अपनी महबूबा से कहे कि अगर तुमने मुझे छोड़कर किसी और का साथ ही चुन लिया, तो फिर मुझसे सफ़ाई क्यों माँग रही हो? जब तुमने मेरी मोहब्बत की परवाह ही नहीं की, तो फिर मेरी सच्चाई का इम्तिहान क्यों? यही बेवफ़ाई का सबसे दर्दनाक पहलू होता है—जब छोड़कर जाने वाला फिर भी इल्ज़ाम लगाता रहे।

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