तू भी नादान है ज़माने से फ़राज़,
वो भी नाख़ुश है वफ़ा से तेरी।
अहमद फ़राज़
यानी: ऐ फ़राज़, तू भी दुनिया की सच्चाइयों को नहीं समझ पाया। तेरा यह सोचना कि वफ़ादारी से तू उसे पा लेगा, एक नादानी है। क्योंकि वो शख़्स तो तेरी वफ़ा से भी नाख़ुश है—उसे कभी तेरी मोहब्बत की कद्र ही नहीं हुई।
गहरी तशरीह: यह शेर उन लोगों के लिए है जो सच्ची मोहब्बत और वफ़ादारी को ही हर रिश्ते की बुनियाद समझते हैं, मगर हक़ीक़त यह है कि कुछ लोग मोहब्बत और वफ़ा की कद्र नहीं करते। फ़राज़ (या कोई भी आशिक़) सोचता है कि अगर वो पूरी शिद्दत से वफ़ा करेगा, तो उसका महबूब भी उससे खुश रहेगा। मगर अफ़सोस, ऐसा नहीं होता—कुछ लोग किसी भी हाल में राज़ी नहीं होते, चाहे कोई उनके लिए कितना भी वफ़ादार क्यों न हो। यह शेर मोहब्बत में ठुकराए जाने, नाकामी और बेवफ़ाई के दर्द को बयान करता है।
मिसाल: जैसे कोई शख़्स दिल से किसी से मोहब्बत करे, हर हाल में उसके लिए वफ़ादार रहे, मगर सामने वाला फिर भी उससे नाखुश ही रहे, उसकी वफ़ा को नज़रअंदाज़ करे या उसे अहमियत ही न दे। तब उसे अहसास होता है कि उसने शायद नादानी कर दी, क्योंकि हर कोई वफ़ा की कद्र करने वाला नहीं होता।